मानव कलम या औद्योगिकरण ??
मानव कलम! मानव कलम ?
फिर मानवता लिखनें में क्यूँ है विलम्ब ?
ये वही हाथ है शायद जो 'सिर्फ कलम' ही नहीं
आम आदमी के सिकुड़े माथे को पढ़ता था
और हाथ में फेली झूरियों को स्पष्ठ लिखता था !
ये वही हथेली है जो श्याही -'खून-पसीने' की भरती थी
मुरझे हुए नाजुक चेहरों में वो कलम- 'उमंग और आशा' रचती थी
और उम्मीदों का पुलिंदा बनकर "आजाद हिन्द फ़ोज" बनती थी!
आवो चलो ढूँढते हैं उस कलम को आज, जो इन्कलाब रस बनती थी
और राष्ट्र प्रेम के धागे में सबको पीरो के रखती थी !
इतिहास के पन्नों को देखो-तिलक नें थी हुंकार भरी
'केसरी-कलम' से अंग्रेजों की छाती में थी तलवार चुभी,
'घोष' नें भी इस कलम से अंग्रेजों की अमानवीय सोच का किया खंडन -
'हिंदी पेट्रियट' अखबार द्वारा रचित 'क्रांति' लाया- 'अंग्रेजो में घुटन'
इस कलम नें ही तो- धुएं उडाये अंग्रेजों के अरमानों के
विवश कर दिया घुटनें बल वापस स्व वतन चलनें को !
जनता को इस कलम नें ही 'आयना' सा भरपूर विश्वास दिया
और रोंगटे खड़े कर दिए दुश्मन के, भागनें पर उनको विवश किया!
ये ताकत है जो कलम की, वो जानें अब कहाँ खो गयी
हाथ अब बदल गए और श्याही भी बदल गयी !
"शब्दों के औद्योगीकरण" नें सब कुछ अब है छीन लिया!
वो 'मानव कलम' अब आम नहीं , अब "PARKER" वाली बन गयी
और श्याही की जगह अब तो "स्वदिष्ठ मसालों" नें ही ले ली!
खबर जो गंगा सी उन्मुक्त, सच और हमेशा स्वच्छ रहती थी,
वो बनावटी 'पञ्च सितारा होटलों के फवारों' सी संकरी, झूटी और गन्दी हो गयी!
मानवता को ताक में रख कर, बिकाते हैं - बातों को
कीमत इतनी गिरा दी है कि बन गए हैं सिर्फ 'विज्ञापन -पत्र' !
पहले तोह अख़बार संजोये जाते थे घर घर में,
पर आज परोसी जाती है भर भर के चाट और मुफली उसमें !
पहले नैतिकता पर चलता था अख़बार , अब अख़बार विज्ञापन पर चलता है
पेज 3 वाले लोगों का बोलबाला उसपे रहता है !
अब आप ही बतावो क्यूँ ना कहें इसे अब मात्र "विज्ञापन"!!!!!
अब आप ही बतावो क्यूँ ना कहें इसे अब मात्र उस अमानवीय हाथों का पागलपन !!!!!
फिर मानवता लिखनें में क्यूँ है विलम्ब ?
ये वही हाथ है शायद जो 'सिर्फ कलम' ही नहीं
आम आदमी के सिकुड़े माथे को पढ़ता था
और हाथ में फेली झूरियों को स्पष्ठ लिखता था !
ये वही हथेली है जो श्याही -'खून-पसीने' की भरती थी
मुरझे हुए नाजुक चेहरों में वो कलम- 'उमंग और आशा' रचती थी
और उम्मीदों का पुलिंदा बनकर "आजाद हिन्द फ़ोज" बनती थी!
आवो चलो ढूँढते हैं उस कलम को आज, जो इन्कलाब रस बनती थी
और राष्ट्र प्रेम के धागे में सबको पीरो के रखती थी !
इतिहास के पन्नों को देखो-तिलक नें थी हुंकार भरी
'केसरी-कलम' से अंग्रेजों की छाती में थी तलवार चुभी,
'घोष' नें भी इस कलम से अंग्रेजों की अमानवीय सोच का किया खंडन -
'हिंदी पेट्रियट' अखबार द्वारा रचित 'क्रांति' लाया- 'अंग्रेजो में घुटन'
इस कलम नें ही तो- धुएं उडाये अंग्रेजों के अरमानों के
विवश कर दिया घुटनें बल वापस स्व वतन चलनें को !
जनता को इस कलम नें ही 'आयना' सा भरपूर विश्वास दिया
और रोंगटे खड़े कर दिए दुश्मन के, भागनें पर उनको विवश किया!
ये ताकत है जो कलम की, वो जानें अब कहाँ खो गयी
हाथ अब बदल गए और श्याही भी बदल गयी !
"शब्दों के औद्योगीकरण" नें सब कुछ अब है छीन लिया!
वो 'मानव कलम' अब आम नहीं , अब "PARKER" वाली बन गयी
और श्याही की जगह अब तो "स्वदिष्ठ मसालों" नें ही ले ली!
खबर जो गंगा सी उन्मुक्त, सच और हमेशा स्वच्छ रहती थी,
वो बनावटी 'पञ्च सितारा होटलों के फवारों' सी संकरी, झूटी और गन्दी हो गयी!
मानवता को ताक में रख कर, बिकाते हैं - बातों को
कीमत इतनी गिरा दी है कि बन गए हैं सिर्फ 'विज्ञापन -पत्र' !
पहले तोह अख़बार संजोये जाते थे घर घर में,
पर आज परोसी जाती है भर भर के चाट और मुफली उसमें !
पहले नैतिकता पर चलता था अख़बार , अब अख़बार विज्ञापन पर चलता है
पेज 3 वाले लोगों का बोलबाला उसपे रहता है !
अब आप ही बतावो क्यूँ ना कहें इसे अब मात्र "विज्ञापन"!!!!!
अब आप ही बतावो क्यूँ ना कहें इसे अब मात्र उस अमानवीय हाथों का पागलपन !!!!!
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