"प्रथम सांस थी वो जब माँ तेरी मीठी आवाज़ से इक उन्मुक्त हवा आई थी और तूनें ज़िन्दगी दे दी मुझे मेरी माँ मैं तो सिर्फ इक माँस का गोला था पर तूनें ही तो उसमें जान फूंकी माँ ओ मेरी माँ! तेरी वो भरी आँखें अभी भी मेरी आँखों में है माँ, जब मैंने कर्म के लिए घर छोड़ा था, वो सिमटी थी कहीं माथे के बीचों -बीच और बिंदी के बीच तूनें कहीं दबा के रख दी थी! जब मैं चला गया सुना था मैंने सबसे कि तू रोई थी, मेरी परछाई में सोयी थी! मैं भी ढूंड रहा था माँ तुझे वहां अपनें पास और तेरा आँचल खोज रहा था ! पर हाँ तेरा इक कपडे का टुकड़ा मैं अपनें साथ लाया था, उसको हर रात अपनें आन्सुवों से सीचता था, कभी उसे अपनें करीब रख कर आँखें मिचता था और उसे तेरा स्पर्श है सोच कर ही सोता था!!! अब भी माँ हूँ मैं तुझसे दूर पर अब समझ आया कि तू तो ह्रदय में है मेरे, वो कपडा किस काम का ??? सांस तो तू है मेरी, मेरी माँ तू ही तो है सब कुछ हमेशा के लिए जो ह्रदय में बसा है इक स्पर्श, इक खुशबु के रूप में !!!!!!!
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